माना जाता है कि सभी इंसान इस धरती पर किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये आते हैं, उन्हीं प्रयासों को पूरा करने की दिशा में जो काम करते हैं, वही हमारे कर्म होते हैं। इस सिद्वान्त को मानें तो यही प्रतीत होता है कि कैप्टन वर्मा और श्रीमती शील कुमारी ने समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार को ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाया और अपना पूरा जीवन इसी उद्देश्य को पूरा करने में लगा दिया। हर बच्चे को शिक्षा के लिए प्रेरित करना इनके जीवन का अभिन्न अंग था, चाहे वह समाज के किसी भी तबके से क्यों न आता हो। बाल्यकाल पर नजर डालें तो देखते हैं कि कानपुर के निकट, उन्नाव जिले के कटहरू नामक गांव में जन्मे हमारे पिताजी, कैप्टन वर्मा ने बहुत ही छोटी उम्र में अपने पिताजी को खो दिया था। ऐसी परिस्थितियों में पिताजी ने बहुत ही कम उम्र में अपने दायित्वों को महसूस किया और वे ग्यारहवी कक्षा में ही थे, जब अपने से कम उम्र के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खुद ही अपने खर्च उठाने का प्रयास करने लगे। सी.ए.वी. कॉलेज में अपने कुछ शिक्षकों के व्यक्तित्व और शिक्षा का इनके जीवन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि इन्होंने अपने जीवन में कुछ बड़ा, कुछ महत्वपूर्ण करने की ठान ली।
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जीवन के अभाव कुछ इस तरह घेरे हुये थे कि हर साल उन्हें लगता था कि अब आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकेंगे। लेकिन कहा जाता है कि यदि आपके इरादे नेक और संकल्प में दृढ़ता हो तो प्रकृति आपकी मदद करती है। ऐसी अस्त-व्यस्त सी कठिन जिंदगी में हर राह में उन्हें मार्गदर्शक भी मिलते गये और सहायक भी।
उन्होंने सन् 1960 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बॉटनी में एम.एस.सी. की पढ़ाई पूरी की, और के.पी. कॉलेज में डिमॉन्सट्रेटर के रूप में इनकी नियुक्ति हो गयी। उसी वर्ष वह कॉम्पटी, नागपुर में एन.एस.सी. की ट्रेनिंग के लिये गये और वहाँ से लेफ्टिनेंट बनकर लौटे। लौटने पर, के.पी. कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में उनकी प्रोन्नति हो गयी और 10 मई, 1961 को उनका विवाह सुश्री शील कुमारी, एम.ए. (हिन्दी) एवं एल.टी. से हुआ जो उस समय आदर्श कन्या विद्यालय में उप-प्रधानाचार्या और हिंदी विषय की शिक्षिका थीं।
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हमारी माँ श्रीमती शील कुमारी ने भी काफी कठिनाई में बचपन गुजारा था। उन्होंने एल.टी. की शिक्षा पूरी की, और परिवार की जिम्मेदारी को पूरी तत्परता से निभाने के लिये केवल 19 वर्ष की अल्पायु में ही आदर्श कन्या विद्यालय में शिक्षण का काम शुरू कर दिया। विवाह के बाद इन दंपति ने पूरी तत्परता के साथ अपना पूरा जीवन समाज और शिक्षा को समर्पित कर दिया। शिक्षक जीवन में अपने अनुभव के साथ ही उन्होंने समाज में शिक्षा की कमी महसूस की, और उस कमी को पूरा करने की दिशा में सार्थक प्रयास शुरू कर दिए। लगातार कई वर्षों तक की गई कोशिशों ने अपना रंग दिखाया, और 2 अक्टूबर, 1974 को पिताजी, कैप्टन वर्मा ने एम. एल. कानवेन्ट स्कूल की पहली शाखा खोली। इसी बीच 1968 में हमारी माँ, श्रीमती शील कुमारी की के.पी. गर्ल्स हाई स्कूल में नियुक्ति हो गई और वह उस स्कूल की पहली प्रधानाचार्या बनीं। दोनों के संयुक्त प्रयासों के चलते 1974 में इलाहाबाद शहर में हमारे दादा जी के नाम पर एम.एल.कान्वेन्ट के नाम से स्कूलों की श्रृखला शुरू हुई, और जल्द ही शहर में एम.एल. कानवेन्ट की पाँच शाखाएँ खुली।
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इन स्कूलों के खुलने के बाद, पिताजी तो पूरी तरह से इस दिशा में समर्पित हो गये, जबकि एक नियमित आय को बनाये रखने के लिए माँ ने के.पी. गर्ल्स में अपनी नौकरी जारी रखी। 1994 में अपनी नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद माँ ने अपना पूरा समय एम.एल. कानवेन्ट की गतिविधियों में लगा दिया। जब तक जीवित रहीं, स्कूल के प्रशासन में पूरा मार्गदर्शन देती रहीं, और साथ ही, एकाउंट और मैगज़ीन से सम्बन्धित सारी जिम्मेदारी वह खुद निभाती रहीं।
पिताजी सबकी तरक्की चाहते थे, सबको शिक्षित और जागरूक देखना चाहते थे, इसलिये वे बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करते थे। 30 जून 2015 को मेरी माँ का देहावसान हो गया, और उनके जाने के बाद आठ महीने में ही भी मेरे पिताजी भी इस दुनिया में नहीं रहे, और 24 फरवरी 2016 को उन्होंने भी अपना देह त्याग दिया।
अब हम पीछे देखते हैं तो नजर आता है कि समय-समय पर आयी हुयी अनेक कठिनाइयों के बावजूद अपने इरादों को पूरा करने में उन्होंने जिस तरह से सफलता पाई उससे यही लगता है कि ईश्वर ने उनकी सद्भावना को जरूर ही अपना सहयोग दिया होगा।
वे दोनों चले गये, लेकिन उनकी शिक्षाएं तो हमेशा हमारे साथ रहेंगी...... सदा हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी और एम.एल. कॉनवेन्ट के रूप में उनके प्रयास हमारे बीच सदैव जीवंत रहेंगे।
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